ब्रह्मचर्य व्रत – पाँचवां दिन




आज ब्रह्मचर्य व्रत का पाँचवाँ दिन है। अब तक का सफर मुझे यह सिखा रहा है कि संयम केवल एक अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन का एक गहरा विज्ञान है। शुरुआती दिनों की अस्थिरता अब धीरे-धीरे शांत लहरों में बदल रही है। मन अब थोड़ी-थोड़ी देर के लिए स्थिर रहना सीख रहा है।


सुबह का अनुभव

सुबह उठते ही एक हल्की ठंडी हवा ने मन को ताज़गी दी। ध्यान और जप के समय मन ज्यादा देर तक केंद्रित रह पाया। आज यह एहसास हुआ कि ब्रह्मचर्य का पालन केवल त्याग नहीं, बल्कि भीतर एक नई ऊर्जा का निर्माण भी है।


शरीर और मन में बदलाव

  • एकाग्रता में वृद्धि – काम करते समय भटकाव पहले से कम हो गया है।

  • ऊर्जा का संरक्षण – थकान जल्दी नहीं होती, और काम में स्थिरता बनी रहती है।

  • भावनात्मक स्थिरता – गुस्सा या चिड़चिड़ापन कम महसूस हो रहा है।


आज की चुनौतियाँ

दिन के बीच में कुछ क्षण ऐसे आए जब पुरानी आदतें और कल्पनाएँ मन में उभरने लगीं। लेकिन तुरंत ध्यान को सांस पर केंद्रित करके और कुछ देर टहलकर इस स्थिति से बाहर निकला। यह साबित करता है कि सजगता ही सबसे बड़ा हथियार है।


प्रेरणादायक विचार

ब्रह्मचर्य का असली अर्थ केवल शारीरिक संयम नहीं, बल्कि मानसिक शुद्धि और आत्मबल का विकास है। जब मन विकारों से मुक्त होता है, तो भीतर एक अद्भुत हल्कापन और आनंद का अनुभव होता है।


आज का संकल्प

  • हर विचार को आने से पहले ही परखना – क्या यह मुझे ऊपर उठाता है या गिराता है?

  • भोजन, वाणी और समय – तीनों में संयम रखना।

  • दिन का अंत कृतज्ञता और प्रार्थना से करना।


पाँचवें दिन का यह अनुभव बताता है कि ब्रह्मचर्य कोई दबाव या बोझ नहीं है, बल्कि यह अपने ही भीतर छुपी शक्ति को जगाने का मार्ग है। यह साधना हर दिन मुझे अपने असली स्वरूप के और करीब ला रही है।