ब्रह्मचर्य व्रत – चौथा दिन
आज ब्रह्मचर्य व्रत का चौथा दिन है। धीरे-धीरे मन और शरीर, दोनों ही इस साधना की लय में ढलने लगे हैं। शुरुआती दिनों की बेचैनी अब एक हल्की-सी स्थिरता में बदल रही है। यह वही समय है जब आत्मनियंत्रण की गहराई को महसूस किया जा सकता है।
सुबह का अनुभव
सुबह जल्दी उठते ही मन में एक अलग ऊर्जा महसूस हुई। प्राणायाम और ध्यान के दौरान विचार कम भटक रहे थे। ऐसा लगता है कि मन अब धीरे-धीरे बाहरी विकर्षणों से दूरी बनाना सीख रहा है। सूरज की पहली किरण के साथ एक नयी सकारात्मकता का अनुभव हुआ।
शरीर और मन में बदलाव
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मानसिक स्पष्टता – सोचने और निर्णय लेने की क्षमता और तेज हो रही है।
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शारीरिक ऊर्जा – थकान कम और सहनशक्ति अधिक महसूस हो रही है।
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इंद्रिय नियंत्रण – आंख, कान, और वाणी पर संयम रखना पहले से आसान लग रहा है।
आज की चुनौतियां
हालांकि, मन समय-समय पर पुरानी आदतों की ओर खींचने की कोशिश करता है। सोशल मीडिया, बेवजह बातचीत या लापरवाही, ध्यान भंग करने का प्रयास करती है। ऐसे समय में गहरी सांस लेना और मन को वर्तमान कार्य में लगाना मदद करता है।
प्रेरणादायक विचार
ब्रह्मचर्य केवल इंद्रियों का संयम नहीं, बल्कि विचारों की पवित्रता भी है। जब तक मन शुद्ध नहीं होगा, तब तक बाहरी संयम अधूरा है। हर दिन अपने विचारों की जांच करना और नकारात्मकता को दूर करना आवश्यक है।
आज का संकल्प
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विचार, वाणी और कर्म – तीनों में पवित्रता बनाए रखना।
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किसी भी प्रलोभन को देखकर उससे बचने के बजाय उसे समझना और मन से त्यागना।
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दिन का अंत आत्मचिंतन से करना।
चौथे दिन का यह अनुभव बताता है कि ब्रह्मचर्य एक सतत यात्रा है। यह केवल दिनों की गिनती नहीं, बल्कि स्वयं को भीतर से बदलने की प्रक्रिया है।
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