आम बागानों की विशेष देखभाल की जरूरत

आम के बागों में इस समय बौर और फलों का दौर चल रहा है। किसानों को इस समय बागान की विशेष देखभाल करने की आवश्यकता है। जरा सी लापरवाही बागान के लिए घातक साबित हो सकती है। कृषि विशेषज्ञ फसल पर छिकाव की सलाह दे रहे हैं। आम की फसल में इस समय फल सरसों के दाने के बराबर हो गए हैं। किसानों को अपने बागों में सिंचाई आरंभ कर देनी चाहिए। यदि पूर्व में सूक्ष्म मात्रिक तत्वों का छिकाव नहीं किया जा सका है तो अभी वक्त है कि बागानों में दवाओं का छिड़काव कर आम की फसल की सुरक्षा की जा सकती है।
कृषि विशेषज्ञ सुधीर कुमार तोमर ने कहा कि फसल में 200 लीटर पानी में 150 ग्राम जिंकए 150 ग्राम फेरस फॉस्फेट 150 ग्राम कॉपर सल्फेट के अलावा 200 ग्राम मैग्नीज सल्फेटए 200 ग्राम बोरॉन साथ में 200 ग्राम बुझा चूना मिलाकर छि?काव कर दें। इससे फलों का गिरना कम हो जाएगा तथा बढ़वार अच्छी होगी। जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाए तो यह देखना है कि फल ज्यादा तो नहीं गिर रहा है। यदि गिरने की स्थिति अधिक हो तो फ्लानोफिक्स या वर्धक नामक हॉरमोन युक्त रसायन की 50 एमएल मात्रा 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से फल झडऩा कम हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जब भी हॉरमोन का छिड़काव करें तो उस समय खेत में मिलने वाली नमी के लिए सिंचाई करते रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि फल में यदि कोइलिया रोग लगने से फल में सडऩ और गिरना शुरू हो जाए तो बोरॉन की 400 ग्राम मात्राए यूरिया की 500 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में डालकर छिड़काव करें। इससे फल में कोईलिया रोग नियंत्रित किया जा सकता है। यदि एक बार में पूरी तरह से नियंत्रित नहीं होता है तो 10वें दिन छिड़काव उपरोक्त मात्रा में घोलकर दोहरा देना उचित होगा। कुछ बागों में इस समय फलों और बौर पर गदहिला कीट दिखाई पड़ रहे हैं। जो आम के छोटे फलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यदि यह समस्या बागों में है तो टाटा टाकुमी की 25 ग्राम मात्रा 50 लीटर पानी में घोलकर छिकाव करें। कृषक सिंचाई बराबर करते रहें।
जीर्णोद्धार प्रक्रिया में वैज्ञानिक तरीके से पौधों की डाली, छत्रक और फल देने वाली शाखाओं का निर्धारण किया जाता है और कृत्रिम वृक्षों की 2 वर्षो तक समग्र देख-रेख कर अगले वर्ष फल देने योग्य बना दिया जाता है। पुराने बाग जो प्राय: 10 मीटर गुणे 10 मी के दूरी पर लगाये जाते हैं 40-45 वर्षों में घने हो जाते हैं। ऐसे बगीचों में लम्बी-लम्बी तथा बिना पत्ती व डाली की शाखाओं की अधिकता हो जाती है जिसमें ऊपर की तरफ कुछ पत्तियाँ या मंजर लगते हैं। प्राय: ऐसा देखा गया है कि 10 मी पौधे से पौधे और 10 मी लाइन से लाइन की दूरी पर लगाये गए आम के बगीचे लगभग 40-45 वर्षों में घने हो जाते हैं।
ऐसे बगीचों में लम्बी-लम्बी तथा बिना पत्ती व डाली की शाखाओं की अधिक हो जाती है जिनमें की ऊपर की तरफ ही कुछ पत्तियाँ या मंजर लगते हैं। ऐसे पौधों में सूर्य के प्रकाश तथा वायु के संरचना में भी बाधा पाती है। परिणाम स्वरुप बीमारियों तथा कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है तथा उत्पादन कम हो जाता है ऐसे पौधों को जीर्णोद्धार प्रक्रिया द्वारा पुन: फलत में ला कर कम से कम खर्च में गुणवत्तायुक्त पैदावार प्राप्त की जा सकती है। जीर्णोद्धार करने के लिए पौधों की चुनी हुई शाखाओं को जमीन से 4.5 मी की ऊँचाई पर चाक या सफेद पेन्ट से चिन्हित कर देते हैं शाखाओं को चुनते समय यह ध्यान रखें की चारों दिशाओं में बाहर की तरफ स्थित शाखाओं को ही चुनें।
पौधों के बीच में स्थित शाखाओं, रोगग्रस्त व आढ़ी-तिरछी शाखाओं, को उनके निकलने की स्थान से ही काट दें। शाखाओं को तेज धार वाली आरी या मशीन चालित प्रूनिंग सॉ की सहायता से काटते हैं। तत्पश्चात ऊपर से पूरी शाखा को काट देते ऐसा करने से डालियों के फटने की संभावना नहीं रह जाती।
कटाई के तुरंत बाद कटे भाग पर फफूंदनाशक दवा (कॉपर आक्सीक्लोराइड) को करंज या अरंडी के तेल में मिलाकर पेस्ट कर देते हैं। कटे भाग पर गाय के ताजे गोबर में चिकनी मिट्टी मिलाकर लेप करना भी प्रभावकारी पाया गया है इससे कटे भाग को किसी फफूंदयुक्त बीमारी के संक्रमण से बचाया जा सकता है। कटाई के बाद पौधों के तनों में चूना से पुताई कर देते हैं। ऐसा करने से गोंद निकलने तथा छाल फटने की समस्या कम हो जाती है। गाय के ताजे गोबर में चिकनी मिट्टी मिलाकर तैयार किये गये लेप को पूरे पौधे में लगाने से अच्छा परिणाम मिला है।
कटाई के बाद पौधों का थाला बना दें तथा गुड़ाई करके फरवरी-मार्च में सिंचाई करें। मानसून की शुरूआत में ही प्रत्येक पौधे को 1 किग्रा् सिंगल सुपर फास्फेट 1.5 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश, 200 ग्राम जिंक सल्फेट तथा 50 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद को अच्छी तरह मिलाकर नाली विधि से दें। इस विधि में खाद देने के लिए पौधों के तनों से 1.5 मी की दूरी पर गोलाई में 60 सेमी चौड़ी तथा 30-45 सेमी गहरी नाली बनायें। इस नाली को खाद के मिश्रण से भरकर इसके बाहर की तरफ गोलाई में मेड़ बना दें। 1 किग्रा यूरिया को अक्टूबर माह में थाले में डालकर अच्छी तरह मिला दें। अंतिम बरसात के बाद अक्टूबर माह में थालों में धान के पुआल की पलवार बिछा दें जिससे लम्बे समय तक नमी संरक्षित रह सके। यह प्रक्रिया प्रत्येक वर्ष करें।
पौधों में 70-80 दिनों के अंदर सुसुप्त कलियों से नये-नये कल्ले निकलते हैं। आवश्यकतानुसार प्रत्येक डाली में 8-10 अच्छे, स्वस्थ तथा ऊपर की ओर बढऩे वाले कल्लों को छोड़कर बाकी सभी कल्लों को सिकेटियर की सहायता से काट दें। इस प्रक्रिया को बिरलीकरण कहते हैं। नव सृजित अवांछित कल्लों के बिरलीकरण के उपरांत 2 मिग्रा धनकोप (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड) प्रति लिटर पानी में मिलाकर स्प्रे करना लाभदायक पाया गया है। जीर्णोद्धार किये गये पौधों में उचित देखभाल के अभाव में कभी-कभी तना बेधक कीट का प्रकोप अधिक होता है। यदि पेड़ के नीचे लकड़ी का बुरादा गिरा हुआ दिखे तो समझें कि इस कीट का आक्रमण हो गया है।
बचाव के लिए ग्रसित भाग के छाल को खुरच दें तथा कीड़ों के बिल को साईकिल की तीली से साफ करके उसमें पेट्रोल या नूवान से भीगी रूई ठूँस कर चिकनी मिट्टी से लेप कर दें। नये कल्लों पर पत्तीखाने वाले कीड़ों या पत्ती झुलसने जैसे बीमारी दिखाई दे तो उस पर 0.2 प्रतिशत कवच 0.15 प्रतिशत मोनोक्रोटोफास दवा का 15 दिनों के अन्तराल पर 2 छिड़काव करें। पौधों में अच्छा क्षत्रक विकसित करने के लिए समय-समय पर अवांक्षित शाखाओं तथा कल्लों को काटते रहना चाहिए तथा पत्तों पर आने वाले कीड़ों तथा बीमारियों का नियन्त्रण करते रहें।
प्रथम दो वर्षों में कल्लों की उचित वृद्धि के लिए अक्टूबर माह में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का पर्णीय छिड़काव करें। वांछित कल्लों की बडवार सुनिश्चित करने के लिए कुछ कल्लों की उनके निकलने के स्थान से ही काट दें। समय-समय पर यह सुनिश्चित करते रहें की छत्रक के अंदर पर्याप्त धूप, रोशनी तथा वायु का आवागमन हो रहा है। जीर्णोद्धार का बाद बगीचे की जमीन काफी खाली हो जाती है जिसमें तरह. तरह की अंतर फसल जैसे जायद में लौकी, खीरा व अन्य सब्जियां, खरीफ में अरहर, मूंग, उद व अन्य दलहनी फसलें तथा रबी में आलू, मटर, सरसों, फरसबिन, बोदी इत्यादि फसलों की सफल खेती कर सकती हैं।
इससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी के साथ-साथ बगीचे की मिट्टी में भी सुधार होता है। अंतरशस्य फसल पौधों के पूर्ण छत्रक विकास होने तक लगाई जा सकती है। उसके बाद छाया में होने वाली फसलों जैसे हल्दी, अदरक,ओल की सफल खेती भी की जा सकती है। जीर्णोद्धार किये गये आम के पौधों में तीसरे वर्ष से मंजर आना प्रारम्भ हो जाता है सभी पौधों में मंजर सुनिश्चित करने के लिए दूसरे वर्ष के सितम्बर माह में पौधों को 12 मिली कल्तार (पैक्लोब्यूट्राजाल) प्रति पौधा के दर से एक लिटर पानी में मिलाकर मुख्य तने के पास उपचारित करें। यह भी प्रक्रिया तीसरे-चौथे वर्ष भी करें परन्तु कल्तार की मात्रा 6 मिली प्रति पौधा कर दें। मंजर सुरक्षा के लिए पौधों पर मंजर निकलने के पहले तथा फूल खिलने के बाद कैराथेन 3 ग्राम मोनोक्रोटोफास 1.5 मिली प्रति लिटर पानी के दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। छिड़काव करते समय घोल में सैन्डोबिट- साबुन का प्रयोग करें।
छोटे-छोटे फलों को कीड़ों, बीमारी तथा झडऩे से बचाने के लिए रासायनिक दवा का छिड़काव करें। पाउडरी मिल्ड्यू तथा भुनगा कीट नियन्त्रण के लिए कैराथेन 3 ग्राम प्रति लिटर मोनोक्रोटोफास 1.5 मिली प्रति लिटर का पानी में घोल बनाकर 15.20 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें। फलों को झडऩे से बचाने के लिए फल लगने के बाद पौधों की 15 दिनों के अन्तराल पर कम से कम तीन सिंचाई करें और थालों में पलवार बिछायें।
फलों के राजा आम के मौसम की शुरूआत हो चुकी है। आम के पेड़ों में मटर के दानें जैसे आम टिकोला लगना शुरू भी हो चुका है। आम के बगीचे के मालिक एवं किसानों के सामने आम के टिकोले को बचना एक चुनौतीपूर्ण भरा काम होता है।
किसान जानकारी के अभाव में इसके रख-रखाव पर ध्यान नहीं देते हैं, जिसके कारण आम के टिकोले में विभिन्न तरीके के कीड़़े लग जाते हैं। कीड़ा लग जाने से आम के टिकोले बड़े होकर आम का रूप लेने से पहले ही पेड़ से गिर जाते हैं। बची खुचे आम के टिकोले आंधी-तूफान में गिर जाते हैं। इससे जो बचता है वहीं आम लोगों तक पहुंच पाता है। आम के टिकोले के रख-रखाव के संबंध में दारीसाई कृषि अनुसंधान केन्द्र के तकनिकी पदाधिकारी विनोद कुमार की राय पर अगर किसान अमल करे तो काफी मात्रा में आम के टिकोले कीड़ा लगने से काफी हद तक बचाया जा सकता है और लोगों को भरपूर मात्रा में आम मिल सकेगा।
वैज्ञानिक का सुझाव
1. आम के पेड़ों में जब फल मटर के दाने से बड़े आकार का हो जाये तो मालाथियॉन 50 प्रतिशत का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे। हल्के बादल छाये रहने पर टिकोले पर ऐंथ्रेकनोज एवं चुर्णील फफूंदी होने की संभावना काफी बढ़ जाता है। इससे बचाव के लिये आधा ग्राम कारबेंडाजिम के साथ ही सल्फेक्स डब्ल्यू पी 2.3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे।
इसके छिड़काव के कुछ दिनों के बाद पोषक तत्व या हारमोन का छिड़काव करे। इससे फल के आकार एवं चमक में वृद्धि होता है साथ ही फल का गिरना भी रूक जाता है। इसके लिये एनएए (नेफथेलिक एशिटीक एसीड) जो बाजार में प्लानोफिक्सया एसिमोन अथवा ट्रासेल या मल्टिप्लेक्स 50.100 पीपीएम 5.10 मिलीलीटर प्रति 100 लीट पानी उपलब्ध है इसका घोल बनाकर छिड़काव करे।
2. आम के प्ररोहों में घुंडी पैदा करने वाले, लीफगाल एवं दहीया कीट से बचाव के लिये मोनोक्रोटोफॉस 1 मिलीलीटर या मेटासिस्टाक्स प्रति लीटर घोल तैयार कर 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करे। इससे उक्त कीट से बचाव हो सकता है।